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परवाना आज दे गया क़ासिद हबीब का
पासा पलट गया है हमारे नसीब का।
पासा पलट गया है हमारे नसीब का।
मुझसे छुपाएगा वो भला अपनी कोई बात
रिश्ता है मुझसे उसका कुछ इतने क़रीब का।
माँगी थीं गिड़गिड़ा के दुआएँ ख़ुदा से कल
पूछा है हाल आज जो उसने ग़रीब का।
लगती भी क्या दवा हमें बीमारे-इश्क थे
पर कुछ असर हुआ है अब उसके तबीब का।
रुस्वा हुए हैं बज़्म में क्यों रंजो-ग़म न हो
लगता है हाथ इसमें है मेरे रक़ीब का।
क़ासिद-सन्देशवाहक, तबीब-वैद्य, हबीब-प्रिय, रुसवा-अपमानित,नसीब-भाग्य, बज़्म-सभा, रक़ीब-विरोधी
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- डॉ० भावना