लिखने को मन हमेशा ही मचलता रहा और लिखती भी रही किन्तु अब "नब्बे बरस की इस उम्र में, शल होते जाते दिलो-दिमाग और कँपकँपाते हाथों से जो कुछ लिखा जा सका वह 'शाख के पत्ते' की सूरत में आपके हाथों में है।"
"काम कर ऐसा, हिमालय-सा बने तेरा वजूदतू बड़ा होगा तभी जब तू उसे पा जाएगा।"
मुझे साहित्य से बहुत प्यार है। साहित्य की वादियों में ही भटकते रहने को मन करता है। ज्यादा जानती नहीं हूँ पर मेरे अन्तःकरण में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो कभी तो आत्ममंथन करती हैं और कभी शब्दों में ढलकर रचनाओं का रूप ले लेती हैं। वही सब आपके साथ बाँटना चाहूँगी।