Monday, April 12, 2010

-"बानवे बंसत'

अम्माजी की नई पुस्तक आई है -"बानवे बंसत'
उसी के कुछ अंश दे रही हूँ
उदासी से घिरी अम्माजी कहती हैं-

जी रही हूँ मैं भला, कौन-सी आशा लिए।
बेबसी मुझको मिली है बेबसी के नाम पर।


एकबार मौसी की मार भी खानी पड़ी खेलते २ देर जो हो गई थी, तब पंक्तियाँ कुछ मन से इस तरह निकली-

ज़िन्दगी मिलना तो कुछ मुश्किल नहीं है दोस्तों,
मुझको तो रोना पड़ा है, ज़िन्दगी के नाम पर।

भक्ति भाव से ओत-प्रोत अम्माजी की कलम कभी यूँ बोल उठती-

बख़्शी है क्या क्या नेमतें, इन्सान को प्रभु।
कुछ तो मुझको भी दिया है, आपने ईनाम में।

बाकी अगली पोस्ट में आशा है पंसद आए
Bhawna