अम्माजी की नई पुस्तक आई है -"बानवे बंसत'
उसी के कुछ अंश दे रही हूँ
उदासी से घिरी अम्माजी कहती हैं-
जी रही हूँ मैं भला, कौन-सी आशा लिए।
बेबसी मुझको मिली है बेबसी के नाम पर।
एकबार मौसी की मार भी खानी पड़ी खेलते २ देर जो हो गई थी, तब पंक्तियाँ कुछ मन से इस तरह निकली-
ज़िन्दगी मिलना तो कुछ मुश्किल नहीं है दोस्तों,
मुझको तो रोना पड़ा है, ज़िन्दगी के नाम पर।
भक्ति भाव से ओत-प्रोत अम्माजी की कलम कभी यूँ बोल उठती-
बख़्शी है क्या क्या नेमतें, इन्सान को प्रभु।
कुछ तो मुझको भी दिया है, आपने ईनाम में।
बाकी अगली पोस्ट में आशा है पंसद आए
Bhawna
Monday, April 12, 2010
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