Wednesday, February 18, 2009

मेरा वजूदे-ख़ास, ये तेरी वजह से है...

मेरा वजूदे-ख़ास, ये तेरी वजह से है
मेरे लबों पे प्यास ये, तेरी वजह से है।

हम तेरे पास आ गए अपने ज़नून में
मंज़िल जो आई पास, ये तेरी वजह से है।

ये इंतिशारे-ज़ेहन भी है तेरी ज़ात से
और दिल है जो उदास, ये तेरी वजह से है।

आने से घर में तेरे बहारों की भीड़ है
रौनक़ है आस-पास, ये तेरी वजह से है।

जीने की आरज़ू थी न हसरत ही थी कोई
जीने की दिल में आस, ये तेरी वजह से है।

लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर

वजूदे-ख़ास-विशिष्ट व्यक्तित्व, आरज़ू-आकांक्षा, लबों-होठों, हसरत-शेष इच्छा, जुनून-पागलपन, इंतिशारे-ज़ह्न-मानसिक चिन्ता, ज़ात-व्यक्ति

Friday, February 13, 2009

मेरी गली में डोली लेकर कहार गुज़रे...

मेरी गली में डोली लेकर कहार गुज़रे
ऐसा लगा कि जैसे अब्रे-बहार गुज़रे।

बारातियों की सज-धज, वो ठाट-बाट, ठसके
कुछ रौबदार गुज़रे, कुछ शानदार गुज़रे।

दुल्हन का रूप-यौवन, वो बेखुदी का आलम
तन-मन भिगो के जैसे ठंडी फुहार गुज़रे।

क्यूँ याद आ रहे हैं वे हादिसात मुझको
ज़ुल्मात की हदों को जो करके पार गुज़रे।

दुल्हन रही न दुल्हन, डोली रही न डोली
जब क़ातिलों के उन पर ख़ंजर के वार गुज़रे।

सैलाब आँसुओं के, बिखराव गेसूओं के
आँचल उतर के सर से हो तार-तार गुज़रे।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर

अब्रे-बहार-बहार का बादल, ज़ुल्मात-अँधेरे

Wednesday, February 4, 2009

कोई तो काम इस दुनिया में ऐसा करके जा तू...

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माना कि कुछ नहीं हूँ मैं,लेकिन भरम तो है
यानि खुदा का मुझपे भी थोड़ा करम तो है।

दौलत खुशी की मुझपे नहीं है तो क्या हुआ
मुझपे मगर ये मेरा ख़ज़ाना-ए-गम तो है।

माना कि मुझको वक़्त ने बर्बाद कर दिया
इस पर भी मेरे हाथ में मेरी क़लम तो है।

पूछा उन्होंने हाल तो कहना पड़ा मुझे
शिद्दत ग़मे-हयात की थोड़ी-सी कम तो है।

चलिए, मैं बेशऊर हूँ, बे-अक़्ल हूँ बहुत
लेकिन हुज़ूर, बात में मेरी भी दम तो है।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना
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नहीं उसके सिवा तेरा कोई, ये याद कर ले
खुदा की याद से तू अपना दिल आबाद कर ले।

न उसको याद रखना, करना है बर्बाद खुद को
कहीं ऐसा न हो तू खुद को यूँ बर्बाद कर ले।

अगर फ़रियाद सच्चे दिल की हो, सुनता है मालिक
तू सच्चे दिल से उससे, चाहे जो फ़रियाद कर ले।

जो उससे बँध गया, हर ओर से आज़ाद है वो
तू अपने आपको हर ओर से आज़ाद कर ले।

कोई तो काम इस दुनिया में ऐसा करके जा तू
कि जिससे दुनिया तुझको याद तेरे बाद कर ले।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता-
साहिल पे सफ़ीना पुस्तक से