Monday, January 12, 2009

मैं नहीं बदली, मेरी उल्फ़त न बदली..

मैं नहीं बदली, मेरी उल्फ़त न बदली
इससे भी लेकिन मेरी क़िस्मत न बदली।

जबकि हर इक शै बदलती है यहाँ पर
क्यूँ अभी तक हुस्न की आदत न बदली।

याद उसकी क्यूँ भला मुझको न आए
जबकि अब तक इश्क की फ़ितरत न बदली।

इस बदलते दौर में सब कुछ तो बदला
एक बस इन्सान की वहशत न बदली।

भूख की चक्की में पिसता है युगों से
आज तक मज़दूर की हालत न बदली।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्ता- भावना कुँअर

उल्फ़त-प्रेम, शै-वस्तु, हुस्न-सौंदर्य, फ़ितरत-स्वभाव

Thursday, January 1, 2009

खामोश है...

नववर्ष में मेरे इस नये ब्लॉग पर आप सभी पाठकों का स्वागत है, इस ब्लॉग पर आप श्रीमती लीलावती जी (मेरी अम्माजी) की अनेक रचनाओं का रस्सावादन ले सकतें हैं, आपके सहयोग और स्नेह के बिना ये संभव नहीं होगा आप सबका इस ब्लॉग पर इंतज़ार रहेगा, आज मैं अम्माजी की एक गज़ल आप सबके लिए प्रस्तुत करती हूँ...

तीरगी छाई हुई है, हर डगर खामोश है
आदमी सहमा हुआ है और नगर खामोश है।

गुफ़्तगू करने का उसको शौंक़ था हर एक से
बात कुछ तो है यक़ीनन, वो अगर ख़ामोश है।

जोश कुछ दिल में नही है, सर्द-सा माहौल है
हम इधर ख़ामोश हैं और वो उधर ख़ामोश है।

ऐ मेरे मौला !मुझे अब रास्ता तू ही बता
पड़ गई हूँ मैं अकेली हमसफ़र ख़ामोश है।

मेरे अपने भी तो मुझसे बात कुछ करते नहीं
घर में सन्नाटा है और हर इक बशर ख़ामोश है।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्ता- भावना कुँअर

तीरगी-अंधकार, बशर-आदमी, ग़ुफ़्तगू-बात, हमसफ़र-सहयात्री, माहौल-परिवेश,