मैं नहीं बदली, मेरी उल्फ़त न बदली
इससे भी लेकिन मेरी क़िस्मत न बदली।
जबकि हर इक शै बदलती है यहाँ पर
क्यूँ अभी तक हुस्न की आदत न बदली।
याद उसकी क्यूँ भला मुझको न आए
जबकि अब तक इश्क की फ़ितरत न बदली।
इस बदलते दौर में सब कुछ तो बदला
एक बस इन्सान की वहशत न बदली।
भूख की चक्की में पिसता है युगों से
आज तक मज़दूर की हालत न बदली।
इससे भी लेकिन मेरी क़िस्मत न बदली।
जबकि हर इक शै बदलती है यहाँ पर
क्यूँ अभी तक हुस्न की आदत न बदली।
याद उसकी क्यूँ भला मुझको न आए
जबकि अब तक इश्क की फ़ितरत न बदली।
इस बदलते दौर में सब कुछ तो बदला
एक बस इन्सान की वहशत न बदली।
भूख की चक्की में पिसता है युगों से
आज तक मज़दूर की हालत न बदली।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्ता- भावना कुँअर
उल्फ़त-प्रेम, शै-वस्तु, हुस्न-सौंदर्य, फ़ितरत-स्वभाव