Monday, September 6, 2010

दामन नहीं छुड़ाएँगे इस ज़िदगी से हम...

बहुत दिनों से अम्माजी की रचनाओं की लगातार माँग पर भी मैं पाठकों को रचनाएँ नहीं दे पाई उसके लिए क्षमा चाहती हूँ, अब मेरी किताबें युगांडा से मेरे पास आ गई हैं अब आप लोगों को शिकायत का मौका नहीं दूँगी, पेश है ये गज़ल इस आशा से कि पंसद आएगी ...

दामन नहीं छुड़ाएँगे इस ज़िदगी से हम
रिश्ते सभी निभाएँगे इस ज़िंदगी से हम।

बख्शी हैं कितनी नेमतें परवरदिगार ने
भरपूर हज़ उठाएँगे इस ज़िंदगी से हम।

जो लोग भूल बैठे हैं मतलब हयात का
उन सबको ही मिलाएँगे इस ज़िंदगी से हम।

मफ़हूम ज़िंदगी का समझ लेंगे जिस घड़ी
खिलवाड़ कर ना पाएँगे इस ज़िंदगी से हम।

मुहकम यक़ीन और - अमल के बिन
कैसे नज़र मिलाएँगे इस ज़िंदगी से हम।

बख्शी- प्रदत्त, मुहकम- अटल, नेंमते- वरदान, मुसल्सल- निरन्तर, अमल- कार्यन्वयन, हज़-सुख, मफ़हूम-सन्दर्भ, हयात-ज़ीवन

Monday, April 12, 2010

-"बानवे बंसत'

अम्माजी की नई पुस्तक आई है -"बानवे बंसत'
उसी के कुछ अंश दे रही हूँ
उदासी से घिरी अम्माजी कहती हैं-

जी रही हूँ मैं भला, कौन-सी आशा लिए।
बेबसी मुझको मिली है बेबसी के नाम पर।


एकबार मौसी की मार भी खानी पड़ी खेलते २ देर जो हो गई थी, तब पंक्तियाँ कुछ मन से इस तरह निकली-

ज़िन्दगी मिलना तो कुछ मुश्किल नहीं है दोस्तों,
मुझको तो रोना पड़ा है, ज़िन्दगी के नाम पर।

भक्ति भाव से ओत-प्रोत अम्माजी की कलम कभी यूँ बोल उठती-

बख़्शी है क्या क्या नेमतें, इन्सान को प्रभु।
कुछ तो मुझको भी दिया है, आपने ईनाम में।

बाकी अगली पोस्ट में आशा है पंसद आए
Bhawna

Saturday, February 27, 2010

होली...

अम्माजी और परिवार की ओर से सभी पाठकों को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं
भावना

Sunday, December 6, 2009

दुखद..

जीवन साथी से बिछुड़ने का गम क्या होता है ये आप सभी जानते हैं, अम्माजी को भी इस कठिन दौर से गुज़रना पड़ा, पिछले कुछ महिनों पहले अम्माजी के जीवन साथी उनका साथ छोड़कर चले गए, ईश्वर उनको ये दु:ख सहने की शक्ति दे, अब अम्माजी अकेली तो भारत में नहीं रह सकती थीं,क्योंकि उनका पूरा परिवार अमेरिका में निवास करता है, अम्माजी अब हमेशा के लिए अपने वतन की मिट्टी की खुशबु को साँसों में भरकर, खट्टी,मीठी यादों को समेटकर अमेरिका चली गई, मुझे बहुत दु:ख है कि मैं उनसे जाते वक्त मिल नहीं पाई, मैं उस वक्त सिडनी में थी, हाँ एक बात अच्छी हुई.. प्रगीत उन दिनों भारत में ,थे वो अम्माजी से मिल पाये... अम्माजी ने मेरे लिए अपनी कुछ पुस्तके भेजी हैं.. आप सबकी फरमाईश पर मैं अम्माजी की रचनाएँ जल्दी ही पोस्ट करुँगी...
Bhawna

Monday, May 4, 2009

परवाना आज दे गया क़ासिद हबीब का

15
परवाना आज दे गया क़ासिद हबीब का
पासा पलट गया है हमारे नसीब का।

मुझसे छुपाएगा वो भला अपनी कोई बात
रिश्ता है मुझसे उसका कुछ इतने क़रीब का।

माँगी थीं गिड़गिड़ा के दुआएँ ख़ुदा से कल
पूछा है हाल आज जो उसने ग़रीब का।

लगती भी क्या दवा हमें बीमारे-इश्क थे
पर कुछ असर हुआ है अब उसके तबीब का।

रुस्वा हुए हैं बज़्म में क्यों रंजो-ग़म न हो
लगता है हाथ इसमें है मेरे रक़ीब का।

क़ासिद-सन्देशवाहक, तबीब-वैद्य, हबीब-प्रिय, रुसवा-अपमानित,नसीब-भाग्य, बज़्म-सभा, रक़ीब-विरोधी

लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- डॉ० भावना

Tuesday, April 28, 2009

ज़िन्दगी है, ज़िन्दगी में सार होना चाहिए

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ज़िन्दगी है, ज़िन्दगी में सार होना चाहिए
दिल से दिल गर मिल गया तो प्यार होना चाहिए।

हो हुनर कोई भी बस, इज़हार होना चाहिए
आदमी को उम्र भर ख़ुदार होना चाहिए।

सत्य का, सद्-धर्म का विस्तार होना चाहिए
दोस्तों को दोस्त पर अधिकार होना चाहिए।

भाव पर, अनुभाव पर अधिकार होना चाहिए
रास्ता कोई भी हो भव-पार होना चाहिए।

कुछ भी हो बस आपका दीदार होना चाहिए
इन बहारों में चमन गुलज़ार होना चाहिए।

हुनर-गुण, दीदार-दर्शन, चमन-बगीचा, गुलज़ार-हरा-भरा
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- डॉ० भावना

Wednesday, April 15, 2009

इस तरह लोगों के गर तू काम आता जाएगा

13
इस तरह लोगों के गर तू काम आता जाएगा
सबके दिल में एक दिन तू राम बन छा जाएगा।

है तुझे उससे मुहब्बत इसमें शक कुछ भी नहीं
तू यक़ीं कर तू भी उसको एक दिन भा जाएगा।

जिस तरह मुमकिन हो हासिल कर उसे, खुश रख उसे
तू बड़ा हो जाएगा गर तू उसे पा जाएगा।

छल-कपट क्या चीज़ है चल जाएगा उसको पता
जब किसी से एक भी धोखा अगर खा जाएगा।

काम कर ऐसा, हिमालय-सा बने तेरा वजूद
तू बड़ा होगा तभी जब तू उसे पा जाएगा।

वजूद-अस्तित्व

लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना