बहुत दिनों से अम्माजी की रचनाओं की लगातार माँग पर भी मैं पाठकों को रचनाएँ नहीं दे पाई उसके लिए क्षमा चाहती हूँ, अब मेरी किताबें युगांडा से मेरे पास आ गई हैं अब आप लोगों को शिकायत का मौका नहीं दूँगी, पेश है ये गज़ल इस आशा से कि पंसद आएगी ...
दामन नहीं छुड़ाएँगे इस ज़िदगी से हम
रिश्ते सभी निभाएँगे इस ज़िंदगी से हम।
बख्शी हैं कितनी नेमतें परवरदिगार ने
भरपूर हज़ उठाएँगे इस ज़िंदगी से हम।
जो लोग भूल बैठे हैं मतलब हयात का
उन सबको ही मिलाएँगे इस ज़िंदगी से हम।
मफ़हूम ज़िंदगी का समझ लेंगे जिस घड़ी
खिलवाड़ कर ना पाएँगे इस ज़िंदगी से हम।
मुहकम यक़ीन और - अमल के बिन
कैसे नज़र मिलाएँगे इस ज़िंदगी से हम।
बख्शी- प्रदत्त, मुहकम- अटल, नेंमते- वरदान, मुसल्सल- निरन्तर, अमल- कार्यन्वयन, हज़-सुख, मफ़हूम-सन्दर्भ, हयात-ज़ीवन
Monday, September 6, 2010
Monday, April 12, 2010
-"बानवे बंसत'
अम्माजी की नई पुस्तक आई है -"बानवे बंसत'
उसी के कुछ अंश दे रही हूँ
उदासी से घिरी अम्माजी कहती हैं-
जी रही हूँ मैं भला, कौन-सी आशा लिए।
बेबसी मुझको मिली है बेबसी के नाम पर।
एकबार मौसी की मार भी खानी पड़ी खेलते २ देर जो हो गई थी, तब पंक्तियाँ कुछ मन से इस तरह निकली-
ज़िन्दगी मिलना तो कुछ मुश्किल नहीं है दोस्तों,
मुझको तो रोना पड़ा है, ज़िन्दगी के नाम पर।
भक्ति भाव से ओत-प्रोत अम्माजी की कलम कभी यूँ बोल उठती-
बख़्शी है क्या क्या नेमतें, इन्सान को प्रभु।
कुछ तो मुझको भी दिया है, आपने ईनाम में।
बाकी अगली पोस्ट में आशा है पंसद आए
Bhawna
उसी के कुछ अंश दे रही हूँ
उदासी से घिरी अम्माजी कहती हैं-
जी रही हूँ मैं भला, कौन-सी आशा लिए।
बेबसी मुझको मिली है बेबसी के नाम पर।
एकबार मौसी की मार भी खानी पड़ी खेलते २ देर जो हो गई थी, तब पंक्तियाँ कुछ मन से इस तरह निकली-
ज़िन्दगी मिलना तो कुछ मुश्किल नहीं है दोस्तों,
मुझको तो रोना पड़ा है, ज़िन्दगी के नाम पर।
भक्ति भाव से ओत-प्रोत अम्माजी की कलम कभी यूँ बोल उठती-
बख़्शी है क्या क्या नेमतें, इन्सान को प्रभु।
कुछ तो मुझको भी दिया है, आपने ईनाम में।
बाकी अगली पोस्ट में आशा है पंसद आए
Bhawna
Saturday, February 27, 2010
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