Bhawna
Sunday, December 6, 2009
दुखद..
जीवन साथी से बिछुड़ने का गम क्या होता है ये आप सभी जानते हैं, अम्माजी को भी इस कठिन दौर से गुज़रना पड़ा, पिछले कुछ महिनों पहले अम्माजी के जीवन साथी उनका साथ छोड़कर चले गए, ईश्वर उनको ये दु:ख सहने की शक्ति दे, अब अम्माजी अकेली तो भारत में नहीं रह सकती थीं,क्योंकि उनका पूरा परिवार अमेरिका में निवास करता है, अम्माजी अब हमेशा के लिए अपने वतन की मिट्टी की खुशबु को साँसों में भरकर, खट्टी,मीठी यादों को समेटकर अमेरिका चली गई, मुझे बहुत दु:ख है कि मैं उनसे जाते वक्त मिल नहीं पाई, मैं उस वक्त सिडनी में थी, हाँ एक बात अच्छी हुई.. प्रगीत उन दिनों भारत में ,थे वो अम्माजी से मिल पाये... अम्माजी ने मेरे लिए अपनी कुछ पुस्तके भेजी हैं.. आप सबकी फरमाईश पर मैं अम्माजी की रचनाएँ जल्दी ही पोस्ट करुँगी...
Monday, May 4, 2009
परवाना आज दे गया क़ासिद हबीब का
15
परवाना आज दे गया क़ासिद हबीब का
पासा पलट गया है हमारे नसीब का।
पासा पलट गया है हमारे नसीब का।
मुझसे छुपाएगा वो भला अपनी कोई बात
रिश्ता है मुझसे उसका कुछ इतने क़रीब का।
माँगी थीं गिड़गिड़ा के दुआएँ ख़ुदा से कल
पूछा है हाल आज जो उसने ग़रीब का।
लगती भी क्या दवा हमें बीमारे-इश्क थे
पर कुछ असर हुआ है अब उसके तबीब का।
रुस्वा हुए हैं बज़्म में क्यों रंजो-ग़म न हो
लगता है हाथ इसमें है मेरे रक़ीब का।
क़ासिद-सन्देशवाहक, तबीब-वैद्य, हबीब-प्रिय, रुसवा-अपमानित,नसीब-भाग्य, बज़्म-सभा, रक़ीब-विरोधी
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- डॉ० भावना
Tuesday, April 28, 2009
ज़िन्दगी है, ज़िन्दगी में सार होना चाहिए
14
ज़िन्दगी है, ज़िन्दगी में सार होना चाहिए
दिल से दिल गर मिल गया तो प्यार होना चाहिए।
हो हुनर कोई भी बस, इज़हार होना चाहिए
आदमी को उम्र भर ख़ुदार होना चाहिए।
सत्य का, सद्-धर्म का विस्तार होना चाहिए
दोस्तों को दोस्त पर अधिकार होना चाहिए।
भाव पर, अनुभाव पर अधिकार होना चाहिए
रास्ता कोई भी हो भव-पार होना चाहिए।
कुछ भी हो बस आपका दीदार होना चाहिए
इन बहारों में चमन गुलज़ार होना चाहिए।
हुनर-गुण, दीदार-दर्शन, चमन-बगीचा, गुलज़ार-हरा-भरा
ज़िन्दगी है, ज़िन्दगी में सार होना चाहिए
दिल से दिल गर मिल गया तो प्यार होना चाहिए।
हो हुनर कोई भी बस, इज़हार होना चाहिए
आदमी को उम्र भर ख़ुदार होना चाहिए।
सत्य का, सद्-धर्म का विस्तार होना चाहिए
दोस्तों को दोस्त पर अधिकार होना चाहिए।
भाव पर, अनुभाव पर अधिकार होना चाहिए
रास्ता कोई भी हो भव-पार होना चाहिए।
कुछ भी हो बस आपका दीदार होना चाहिए
इन बहारों में चमन गुलज़ार होना चाहिए।
हुनर-गुण, दीदार-दर्शन, चमन-बगीचा, गुलज़ार-हरा-भरा
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- डॉ० भावना
प्रस्तुतकर्त्ता- डॉ० भावना
Wednesday, April 15, 2009
इस तरह लोगों के गर तू काम आता जाएगा
13
इस तरह लोगों के गर तू काम आता जाएगा
सबके दिल में एक दिन तू राम बन छा जाएगा।
इस तरह लोगों के गर तू काम आता जाएगा
सबके दिल में एक दिन तू राम बन छा जाएगा।
है तुझे उससे मुहब्बत इसमें शक कुछ भी नहीं
तू यक़ीं कर तू भी उसको एक दिन भा जाएगा।
जिस तरह मुमकिन हो हासिल कर उसे, खुश रख उसे
तू बड़ा हो जाएगा गर तू उसे पा जाएगा।
छल-कपट क्या चीज़ है चल जाएगा उसको पता
जब किसी से एक भी धोखा अगर खा जाएगा।
काम कर ऐसा, हिमालय-सा बने तेरा वजूद
तू बड़ा होगा तभी जब तू उसे पा जाएगा।
वजूद-अस्तित्व
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना
Monday, April 6, 2009
मैं उसे जानूं न जानूं, जानता है वो मुझे...
12
मैं उसे जानूं न जानूं, जानता है वो मुझे
और अपना सिर्फ़ अपना मानता है मुझे।
हादसों के बोझ से उसकी कमर टूटी मगर
अपनी बद-हाली का कारण मानता है वो मुझे।
ज़र्फ का मेरे जनाज़ा उठ गया बरसों हुए
आज भी बाज़र्फ़ लेकिन मानता है मुझे।
इश़्क की फ़ितरत यही है जान ले लेता है वो
मैंने उसपे जां लुटा दी मानता है वो मुझे।
मैं तो खुद वाक़िफ़ नहीं थी आज तक इस बात से
जान से बढ़के प्यारी मानता है वो मुझे।
बदहाली-फटेहाली, फ़ितरत-शदत, ज़र्फ़-सहनशीलता, वाकिफ़-परिचित, बाज़र्फ़-सहनशील
और अपना सिर्फ़ अपना मानता है मुझे।
हादसों के बोझ से उसकी कमर टूटी मगर
अपनी बद-हाली का कारण मानता है वो मुझे।
ज़र्फ का मेरे जनाज़ा उठ गया बरसों हुए
आज भी बाज़र्फ़ लेकिन मानता है मुझे।
इश़्क की फ़ितरत यही है जान ले लेता है वो
मैंने उसपे जां लुटा दी मानता है वो मुझे।
मैं तो खुद वाक़िफ़ नहीं थी आज तक इस बात से
जान से बढ़के प्यारी मानता है वो मुझे।
बदहाली-फटेहाली, फ़ितरत-शदत, ज़र्फ़-सहनशीलता, वाकिफ़-परिचित, बाज़र्फ़-सहनशील
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना
Wednesday, March 25, 2009
सामने उनके ज़ुबाँ ये, कुछ भी कह पाती नहीं...
11
सामने उनके ज़ुबाँ ये, कुछ भी कह पाती नहीं
बात लेकिन दिल की किसके सामने आती नहीं।
नब्ज़ मेरी देख कर बतलाइए क्या है मुझे
जाम कितने पी चुका मैं, तिश्नगी जाती नहीं।
बारहा सोचा, समझ में आज तक आया नहीं
नींद क्यों आँखों में मेरी रात भर आती नहीं।
मुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
क्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।
हो गई जिसकी वजह से ज़िन्दगी आहों भरी
वो परीवश भी तो मुझको आके समझाती नहीं।
तिश्नगी-प्यास, परीवश- परियों जैसा, बारहा-बार-बार, मुब्तला-ग्रस्त, इबादत-पूजा
बात लेकिन दिल की किसके सामने आती नहीं।
नब्ज़ मेरी देख कर बतलाइए क्या है मुझे
जाम कितने पी चुका मैं, तिश्नगी जाती नहीं।
बारहा सोचा, समझ में आज तक आया नहीं
नींद क्यों आँखों में मेरी रात भर आती नहीं।
मुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
क्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।
हो गई जिसकी वजह से ज़िन्दगी आहों भरी
वो परीवश भी तो मुझको आके समझाती नहीं।
तिश्नगी-प्यास, परीवश- परियों जैसा, बारहा-बार-बार, मुब्तला-ग्रस्त, इबादत-पूजा
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
Sunday, March 22, 2009
रहता है जो इस दिल में, उस यार के सदके हम...
10
रहता है जो इस दिल में, उस यार के सदके हम
रहता है जो इस दिल में, उस यार के सदके हम
जो मिट के न मिट पाया, उस प्यार के सदके हम।
जां अपनी चली जाये, परवाह नहीं कुछ भी
इज़्ज़त के पुजारी हैं, दस्तार के सदक़े हम।
होली हो, दीवाली हो, या ईद की खुशियाँ हों
बिछड़ों को मिला दे-उस त्यौहार के सदक़े हम।
संगीत ही दुनिया है, संगीत ही जां अपनी
इस साज़े-मुहब्बत की झंकार के सदक़े हम।
जब हो ही गए रुस्वा, हम सब से मिलेंगे अब
इक़रारे-मुहब्बत में इक़रार के सदक़े हम।
सदक़े-न्यौछावर, दस्तार-पगड़ी
लेखिका- लीलावती बन्सल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
Sunday, March 15, 2009
पता नहीं ये दिल की बातें दिल से कब हो जाती हैं...
कुछ पाठकों ने इस ब्लॉग को पसंद किया है और अनुसरणकर्ता में अपना नाम दिया ना जाने मुझसे कैसे उनका नाम हट गया... मन बहुत दुखी हुआ... और मैं उनको देख भी नहीं पाई कि कौन-कौन थे.. अगर वे लोग फिर से अपना लिंक देंगे तो मुझे खुशी होगी....
9
पता नहीं ये दिल की बातें दिल से कब हो जाती हैं
दिल के भीतर जाकर फिर वे ख़्वाबों में खो जाती हैं।
दिल के भीतर जाकर फिर वे ख़्वाबों में खो जाती हैं।
मुझसे था तो उसका रिश्ता, लेकिन उसने माना कब
चर्चाएँ इसकी भी आख़िर घर-घर में हो जाती है।
मुतवातिर नाकामी से हम कैसे खुश रह सकते हैं
इच्छाएँ मरने लगती हैं, उम्मीदें सो जाती हैं।
रैन-दिवस पगलाया-सा मैं आहें भरता रहता हूँ
आँसू की धाराएँ बह-बह, गालों को धो जाती हैं।
समझ नहीं पाता है कोई दिल को क्या हो जाता है
दिल के किए को मेरी साँसे किसी तरह ढो जाती है।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
मुतवातिर-लगातार
Friday, March 6, 2009
मुझसे नज़र बचा के अकेली गुज़र गई...
8
मुझसे नज़र बचा के अकेली गुज़र गई
कोई ज़रा बताए मुझे वो किधर गई।
महसूस कर रहा हूँ अब उसके फ़िराक़ में
जैसे कि रेल सीने से मेरे गुज़र गई।
कोई ज़रा बताए मुझे वो किधर गई।
महसूस कर रहा हूँ अब उसके फ़िराक़ में
जैसे कि रेल सीने से मेरे गुज़र गई।
जो भी सज़ाएँ देनी हों, वो दीजिए मुझे
सूरत हसीन आपकी, दिल में उतर गई।
अपने ही गाँव वाले मुझे जानते न थे
ये खुद की जुस्तज़ू, मुझे मशहूर कर गई।
हमने हसीन ख़्वाब तो देखे न थे कभी
किस की दुआ है आज जो क़िस्मत सँवर गई।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
जुस्तजू-तलाश, फ़िराक-चिन्ता, हसीन-सुन्दर
Monday, March 2, 2009
मर गई इन्सानियत इन्सान की इस दौर में...
7.
मर गई इन्सानियत इन्सान की इस दौर में
शान मिट्टी हो गई ईमान की इस दौर में।
शान मिट्टी हो गई ईमान की इस दौर में।
अब किसी के खून में सुर्ख़ी नहीं, गर्मी नहीं
चर्ख़ तक गुड्डी चढ़ी शैतान की इस दौर में।
काम कुछ आती नहीं अब बुज़र्गों की दुआ
क्या ज़रूरत रह गई भगवान की इस दौर में।
जिस जगह भी देखिए हैवानियत का नाच है
हर कहीं सत्ता है बस हैवान की इस दौर में।
आज की दुनिया है बस चालाकियों पर है टिकी
ख़्वार है मिट्टी बहुत, नादान की इस दौर में।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
Wednesday, February 18, 2009
मेरा वजूदे-ख़ास, ये तेरी वजह से है...
मेरा वजूदे-ख़ास, ये तेरी वजह से है
मेरे लबों पे प्यास ये, तेरी वजह से है।
मेरे लबों पे प्यास ये, तेरी वजह से है।
हम तेरे पास आ गए अपने ज़नून में
मंज़िल जो आई पास, ये तेरी वजह से है।
ये इंतिशारे-ज़ेहन भी है तेरी ज़ात से
और दिल है जो उदास, ये तेरी वजह से है।
आने से घर में तेरे बहारों की भीड़ है
रौनक़ है आस-पास, ये तेरी वजह से है।
जीने की आरज़ू थी न हसरत ही थी कोई
जीने की दिल में आस, ये तेरी वजह से है।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
वजूदे-ख़ास-विशिष्ट व्यक्तित्व, आरज़ू-आकांक्षा, लबों-होठों, हसरत-शेष इच्छा, जुनून-पागलपन, इंतिशारे-ज़ह्न-मानसिक चिन्ता, ज़ात-व्यक्ति
Friday, February 13, 2009
मेरी गली में डोली लेकर कहार गुज़रे...
मेरी गली में डोली लेकर कहार गुज़रे
ऐसा लगा कि जैसे अब्रे-बहार गुज़रे।
ऐसा लगा कि जैसे अब्रे-बहार गुज़रे।
बारातियों की सज-धज, वो ठाट-बाट, ठसके
कुछ रौबदार गुज़रे, कुछ शानदार गुज़रे।
दुल्हन का रूप-यौवन, वो बेखुदी का आलम
तन-मन भिगो के जैसे ठंडी फुहार गुज़रे।
क्यूँ याद आ रहे हैं वे हादिसात मुझको
ज़ुल्मात की हदों को जो करके पार गुज़रे।
दुल्हन रही न दुल्हन, डोली रही न डोली
जब क़ातिलों के उन पर ख़ंजर के वार गुज़रे।
सैलाब आँसुओं के, बिखराव गेसूओं के
आँचल उतर के सर से हो तार-तार गुज़रे।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
अब्रे-बहार-बहार का बादल, ज़ुल्मात-अँधेरे
Wednesday, February 4, 2009
कोई तो काम इस दुनिया में ऐसा करके जा तू...
3
माना कि कुछ नहीं हूँ मैं,लेकिन भरम तो है
यानि खुदा का मुझपे भी थोड़ा करम तो है।
यानि खुदा का मुझपे भी थोड़ा करम तो है।
दौलत खुशी की मुझपे नहीं है तो क्या हुआ
मुझपे मगर ये मेरा ख़ज़ाना-ए-गम तो है।
माना कि मुझको वक़्त ने बर्बाद कर दिया
इस पर भी मेरे हाथ में मेरी क़लम तो है।
पूछा उन्होंने हाल तो कहना पड़ा मुझे
शिद्दत ग़मे-हयात की थोड़ी-सी कम तो है।
चलिए, मैं बेशऊर हूँ, बे-अक़्ल हूँ बहुत
लेकिन हुज़ूर, बात में मेरी भी दम तो है।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना
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नहीं उसके सिवा तेरा कोई, ये याद कर ले
खुदा की याद से तू अपना दिल आबाद कर ले।
खुदा की याद से तू अपना दिल आबाद कर ले।
न उसको याद रखना, करना है बर्बाद खुद को
कहीं ऐसा न हो तू खुद को यूँ बर्बाद कर ले।
अगर फ़रियाद सच्चे दिल की हो, सुनता है मालिक
तू सच्चे दिल से उससे, चाहे जो फ़रियाद कर ले।
जो उससे बँध गया, हर ओर से आज़ाद है वो
तू अपने आपको हर ओर से आज़ाद कर ले।
कोई तो काम इस दुनिया में ऐसा करके जा तू
कि जिससे दुनिया तुझको याद तेरे बाद कर ले।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता-
प्रस्तुतकर्त्ता-
साहिल पे सफ़ीना पुस्तक से
Monday, January 12, 2009
मैं नहीं बदली, मेरी उल्फ़त न बदली..
मैं नहीं बदली, मेरी उल्फ़त न बदली
इससे भी लेकिन मेरी क़िस्मत न बदली।
जबकि हर इक शै बदलती है यहाँ पर
क्यूँ अभी तक हुस्न की आदत न बदली।
याद उसकी क्यूँ भला मुझको न आए
जबकि अब तक इश्क की फ़ितरत न बदली।
इस बदलते दौर में सब कुछ तो बदला
एक बस इन्सान की वहशत न बदली।
भूख की चक्की में पिसता है युगों से
आज तक मज़दूर की हालत न बदली।
इससे भी लेकिन मेरी क़िस्मत न बदली।
जबकि हर इक शै बदलती है यहाँ पर
क्यूँ अभी तक हुस्न की आदत न बदली।
याद उसकी क्यूँ भला मुझको न आए
जबकि अब तक इश्क की फ़ितरत न बदली।
इस बदलते दौर में सब कुछ तो बदला
एक बस इन्सान की वहशत न बदली।
भूख की चक्की में पिसता है युगों से
आज तक मज़दूर की हालत न बदली।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्ता- भावना कुँअर
उल्फ़त-प्रेम, शै-वस्तु, हुस्न-सौंदर्य, फ़ितरत-स्वभाव
Thursday, January 1, 2009
खामोश है...
नववर्ष में मेरे इस नये ब्लॉग पर आप सभी पाठकों का स्वागत है, इस ब्लॉग पर आप श्रीमती लीलावती जी (मेरी अम्माजी) की अनेक रचनाओं का रस्सावादन ले सकतें हैं, आपके सहयोग और स्नेह के बिना ये संभव नहीं होगा आप सबका इस ब्लॉग पर इंतज़ार रहेगा, आज मैं अम्माजी की एक गज़ल आप सबके लिए प्रस्तुत करती हूँ...
तीरगी छाई हुई है, हर डगर खामोश है
आदमी सहमा हुआ है और नगर खामोश है।
गुफ़्तगू करने का उसको शौंक़ था हर एक से
बात कुछ तो है यक़ीनन, वो अगर ख़ामोश है।
जोश कुछ दिल में नही है, सर्द-सा माहौल है
हम इधर ख़ामोश हैं और वो उधर ख़ामोश है।
ऐ मेरे मौला !मुझे अब रास्ता तू ही बता
पड़ गई हूँ मैं अकेली हमसफ़र ख़ामोश है।
मेरे अपने भी तो मुझसे बात कुछ करते नहीं
घर में सन्नाटा है और हर इक बशर ख़ामोश है।
तीरगी छाई हुई है, हर डगर खामोश है
आदमी सहमा हुआ है और नगर खामोश है।
गुफ़्तगू करने का उसको शौंक़ था हर एक से
बात कुछ तो है यक़ीनन, वो अगर ख़ामोश है।
जोश कुछ दिल में नही है, सर्द-सा माहौल है
हम इधर ख़ामोश हैं और वो उधर ख़ामोश है।
ऐ मेरे मौला !मुझे अब रास्ता तू ही बता
पड़ गई हूँ मैं अकेली हमसफ़र ख़ामोश है।
मेरे अपने भी तो मुझसे बात कुछ करते नहीं
घर में सन्नाटा है और हर इक बशर ख़ामोश है।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्ता- भावना कुँअर
प्रस्तुतकर्ता- भावना कुँअर
तीरगी-अंधकार, बशर-आदमी, ग़ुफ़्तगू-बात, हमसफ़र-सहयात्री, माहौल-परिवेश,
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