Tuesday, April 28, 2009

ज़िन्दगी है, ज़िन्दगी में सार होना चाहिए

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ज़िन्दगी है, ज़िन्दगी में सार होना चाहिए
दिल से दिल गर मिल गया तो प्यार होना चाहिए।

हो हुनर कोई भी बस, इज़हार होना चाहिए
आदमी को उम्र भर ख़ुदार होना चाहिए।

सत्य का, सद्-धर्म का विस्तार होना चाहिए
दोस्तों को दोस्त पर अधिकार होना चाहिए।

भाव पर, अनुभाव पर अधिकार होना चाहिए
रास्ता कोई भी हो भव-पार होना चाहिए।

कुछ भी हो बस आपका दीदार होना चाहिए
इन बहारों में चमन गुलज़ार होना चाहिए।

हुनर-गुण, दीदार-दर्शन, चमन-बगीचा, गुलज़ार-हरा-भरा
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- डॉ० भावना

Wednesday, April 15, 2009

इस तरह लोगों के गर तू काम आता जाएगा

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इस तरह लोगों के गर तू काम आता जाएगा
सबके दिल में एक दिन तू राम बन छा जाएगा।

है तुझे उससे मुहब्बत इसमें शक कुछ भी नहीं
तू यक़ीं कर तू भी उसको एक दिन भा जाएगा।

जिस तरह मुमकिन हो हासिल कर उसे, खुश रख उसे
तू बड़ा हो जाएगा गर तू उसे पा जाएगा।

छल-कपट क्या चीज़ है चल जाएगा उसको पता
जब किसी से एक भी धोखा अगर खा जाएगा।

काम कर ऐसा, हिमालय-सा बने तेरा वजूद
तू बड़ा होगा तभी जब तू उसे पा जाएगा।

वजूद-अस्तित्व

लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना

Monday, April 6, 2009

मैं उसे जानूं न जानूं, जानता है वो मुझे...

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मैं उसे जानूं न जानूं, जानता है वो मुझे
और अपना सिर्फ़ अपना मानता है मुझे।

हादसों के बोझ से उसकी कमर टूटी मगर
अपनी बद-हाली का कारण मानता है वो मुझे।

ज़र्फ का मेरे जनाज़ा उठ गया बरसों हुए
आज भी बाज़र्फ़ लेकिन मानता है मुझे।

इश़्क की फ़ितरत यही है जान ले लेता है वो
मैंने उसपे जां लुटा दी मानता है वो मुझे।

मैं तो खुद वाक़िफ़ नहीं थी आज तक इस बात से
जान से बढ़के प्यारी मानता है वो मुझे।

बदहाली-फटेहाली, फ़ितरत-शदत, ज़र्फ़-सहनशीलता, वाकिफ़-परिचित, बाज़र्फ़-सहनशील
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना