15
परवाना आज दे गया क़ासिद हबीब का
पासा पलट गया है हमारे नसीब का।
पासा पलट गया है हमारे नसीब का।
मुझसे छुपाएगा वो भला अपनी कोई बात
रिश्ता है मुझसे उसका कुछ इतने क़रीब का।
माँगी थीं गिड़गिड़ा के दुआएँ ख़ुदा से कल
पूछा है हाल आज जो उसने ग़रीब का।
लगती भी क्या दवा हमें बीमारे-इश्क थे
पर कुछ असर हुआ है अब उसके तबीब का।
रुस्वा हुए हैं बज़्म में क्यों रंजो-ग़म न हो
लगता है हाथ इसमें है मेरे रक़ीब का।
क़ासिद-सन्देशवाहक, तबीब-वैद्य, हबीब-प्रिय, रुसवा-अपमानित,नसीब-भाग्य, बज़्म-सभा, रक़ीब-विरोधी
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- डॉ० भावना
इसे तो बस बेहतरीन ही कहा जा सकता है।
ReplyDeleteबहुत ही असरकारक रचना...!वाह...!
ReplyDeleteलाजवाब ग़ज़ल है..............आपके ब्लॉग पर हमेशा ही मोती मिल जाते हैं ..........लिखा है रवि जी
ReplyDeleteमुश्किल काफिये को क्या खूब निभाया है पूरी ग़ज़ल में...वाह...
ReplyDeleteनीरज
परवाना आज दे गया क़ासिद हबीब का
ReplyDeleteपासा पलट गया है हमारे नसीब का।"
वाह, वाह ! बेहतरीन रचना । धन्यवाद ।
मेरे दिल में कहीं अटक गयी है जैसे पेड़ में पतंग
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
WAAH BAHOT HI KHUBSURAT GAZAL ... BAHOT ACHHEE LAGEE LEELAWATEE JEE KO SAADAR IS GAZAL KE LIYE AUR AAPKA SHUKRIYA KUBSURAT PRASTUTI KE LIYE...
ReplyDeleteARSH
ग़ज़ल में उस्ताद शायरों द्वारा इश्तेमाल की जाने बाली बहर का निर्वाह देखकर हैरान हूँ.
ReplyDeleteउर्दू की मश्हूर बहरे मज़ारेअ मुसम्मन अखरब,मकफ़ूफ़,महज़ूफ़ का उपरोक्त ग़ज़ल में प्रयोग किया गया है.
इसके अरकान इस प्रकार हैं.तक्तीय करके देखें-
मफऊल-फाइलात-मफाईल - फाइलुन.
221-- 2121- 1221 -212
परवान- आजदेग-य कासिदह-बीबका.
पासाप- लटगयाह-हमारेन-सीबका.
इसी बहर में अन्य ग़ज़लें
शहरयार की मश्हूर ग़ज़ल
दिलचीज-क्याहआप-मिरीजान लीजिए.
बसएक- बारमेर-कहामान-लीजिए.
यहाँ उच्चारण के आधार पर लघु गुरु की छूट शायर को मिल रही है.जो जाइज़ है.
दुश्यन्त कुमार की ग़ज़ल-
खंडहर बचे हुए हैं इमारत नहीं रही.
अच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नहीं रही.
अब ग़ज़ल के कथ्य की बात
माँगी थी गिड़गिड़ा के दुआयें ख़ुदा से कल,
पूछा है हाल आज जो उसने गरीब का.
यहाँ गिड़गिड़ा के का जबाब नहीं पुरअसर यों ही दुआयें नहीं होती.
हाल गरीब का पूछ के उसने तो मालामाल कर दिया.
वल्लाह ऐसी किस्मत हर एक की कहाँ होती.
ग़ज़ल कहने का शऊर भी अल्लाह हर किसी को नहीं देता.
हम इन दिनों अपनी बेशऊरी के लिए रुस्वा हैं रकीबों से क्या गिला करें.
एक बेहद नाज़ुक खयाली की ग़ज़ल को पढ़ाने के लिए मश्कूर हूँ मोहतरमा. बयान ज़ारी रहे. आमीन.
माँगी थीं गिड़गिड़ा के दुआएँ ख़ुदा से कल
ReplyDeleteपूछा है हाल आज जो उसने ग़रीब का।
bahut khoob...!
sundar rachna ke liye badhaai.
ReplyDeleteरुस्वा हुए हैं बज़्म में क्यों रंजो-ग़म न हो
लगता है हाथ इसमें है मेरे रक़ीब का।
सच बोलना हुआ है ज़माने में यूं अजाब
ReplyDeleteहासिल हुआ है मुझको ये तोहफा सलीब का
एक कामयाब और murasaa ग़ज़ल कहने के लिए
मुबारकबाद कुबूल फरमाएं ....
---मुफलिस---
भावना जी आप साहित्यकारों की सच्ची सेवा कर रहीं। सच्चे और अच्छे पिता की सच्ची और अच्छी पुत्री। अपने पिता श्री को मेरा प्रणाम कहना।
ReplyDeleteसादर कुंवरस्ते...
sundar
ReplyDeletelajawaab
ReplyDeleteबहुत ही ख़ूबसूरत रचना पढ़ा दी आपने......... आज शायद जो मै खोज रहा था...... वो मुझे यही मिल गया.......
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग । प्रोत्साहन मिला ,उमर कुछ नहीं होती शुभकामनायें
ReplyDeleteमुझसे छुपाएगा वो भला अपनी कोई बात
ReplyDeleteरिश्ता है मुझसे उसका कुछ इतने क़रीब का।
माँगी थीं गिड़गिड़ा के दुआएँ ख़ुदा से कल
पूछा है हाल आज जो उसने ग़रीब का।
bahut hi khoobsurat rachna
-Sheena
एक साथ इतनी अच्छी-अच्छी गज़लें पढने को मिल गईं आपके ब्लॉग पर । नीचे दिये गये शब्दार्थ बहुत ही उपयोगी हैं ।
ReplyDeleteशुक्रिया ।
bhut sundar gajal hai.
ReplyDeleteइष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.
ReplyDeleteअम्मा जी को मेरा अभवादन और आप को शुक्रिया जो आप उनकी बात लोगो तक पहुंचा रही है
ReplyDeleteरुस्वा हुए हैं बज़्म में क्यों रंजो-ग़म न हो
ReplyDeleteलगता है हाथ इसमें है मेरे रक़ीब का।
Gazal ke har sher khaas aur alag lage.
bahut sundar ghazal hai....rachna aur bhavna dono mujhe bahut hi achhe lage...
ReplyDeleteपरवाना आज दे गया क़ासिद हबीब का
ReplyDeleteपासा पलट गया है हमारे नसीब का।
aadarniya ammaji ka lekhan mene jitna bhi padjha haii kabile tareef hai ..aur sahaj v sacha hone ke satth dil se srajit kiya gaya hai ...bahut acha lagta hai unhe padhna ....aur dr bhavna ...waka aap bhi bahut nek kaam ker rehi hai .....