मैं नहीं बदली, मेरी उल्फ़त न बदली
इससे भी लेकिन मेरी क़िस्मत न बदली।
जबकि हर इक शै बदलती है यहाँ पर
क्यूँ अभी तक हुस्न की आदत न बदली।
याद उसकी क्यूँ भला मुझको न आए
जबकि अब तक इश्क की फ़ितरत न बदली।
इस बदलते दौर में सब कुछ तो बदला
एक बस इन्सान की वहशत न बदली।
भूख की चक्की में पिसता है युगों से
आज तक मज़दूर की हालत न बदली।
इससे भी लेकिन मेरी क़िस्मत न बदली।
जबकि हर इक शै बदलती है यहाँ पर
क्यूँ अभी तक हुस्न की आदत न बदली।
याद उसकी क्यूँ भला मुझको न आए
जबकि अब तक इश्क की फ़ितरत न बदली।
इस बदलते दौर में सब कुछ तो बदला
एक बस इन्सान की वहशत न बदली।
भूख की चक्की में पिसता है युगों से
आज तक मज़दूर की हालत न बदली।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्ता- भावना कुँअर
उल्फ़त-प्रेम, शै-वस्तु, हुस्न-सौंदर्य, फ़ितरत-स्वभाव
बहुत सुंदर लिखा है आपने ...बधाई।
ReplyDeleteबहुत आभार इस रचना को यहाँ प्रस्तुत करने का. नया ब्लॉग, नये वर्ष का तोहफा. बधाई एवं मंगलकामनाऐं.
ReplyDeleteकमाल की रचना है...आभार आपका इसे प्रस्तुत करने का...
ReplyDeleteनीरज
भावना जी ,आपकी ये रचना तो पिछली रचनाओं से कमज़ोर है.....अलबत्ता भाव तो अच्छे ही हैं....जबकि आपकी अम्मा जी को पढ़कर लगा कि क्या बात है...!!
ReplyDeleteकभी-कभी बस यूँ ही होता है कि कोई रचना थोडी गहरी नहीं मालूम होती....दो शेर इस रचना के भी थोड़े हलके बन पड़े हैं...वो..........
ReplyDeleteजबकि हर इक शै बदलती है यहाँ पर
क्यूँ अभी तक हुस्न की आदत न बदली।
याद उसकी क्यूँ भला मुझको न आए
जबकि अब तक इश्क की फ़ितरत न बदली।...............बेशक अच्छे तो हैं.....मगर ग़ज़ल ने अंत में जो मार्मिक भाव व्यक्त किए हैं.....उसकी तारतम्यता को ये शेर थोड़ा खंडित करते हुए से लगे.....दरअसल जब हम कोई सदेश देते-से कवित्त देखते हैं....तब उसकी तुलना में थोडी-सी भी हलकी चीज़ ज्यादा हलकी मालुम पड़ती है.....बाकि इन्हें अलग से देखो तो कोई खराबी नहीं दिखायी देती......बस सन्दर्भ का फर्क होता है.....और एक बात......कि ये रचना भावना जी,आपकी नहीं....बल्कि अम्मा जी की ही हैं........उन्ही की अगली रचना "खामोश है " तो बड़ी ही अद्भुत रचना है....उसमे समूची ग़ज़ल में सन्दर्भ से हट कर कुछ भी नहीं कहा गया है...और तमाम शेर जबरदस्त है....बहुत ही जबरदस्त....कमाल है भाई....और अगरचे आप एक भी पाठक की बात इतना ध्यान देते हो तो ये बहुत बड़ी बात है.....आप अवश्य ऊँचे उठोगे.....मैं तो बस तुकबंदी करने वाला इक भावुक रचनाकार हूँ....मेरी बात को दिल से मत ले लेना.....मुझे भी नहीं पता कि मैं क्या-क्या बकता रहता हूँ......आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.....और आभार....!!
इतनी समर्थ रचनाएँ और इतनी कम टिप्पणियां . हैरान हूँ मैं
ReplyDeleteआपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
ReplyDeleteआपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
ReplyDeleteयाद उसकी क्यूँ भला मुझको न आए
ReplyDeleteजबकि अब तक इश्क की फ़ितरत न बदली।
इस बदलते दौर में सब कुछ तो बदला
एक बस इन्सान की वहशत न बदली।
bahot bahot badhai aapke is naye blog par...
geharai bhari is rachna ke liye hardik badhai ammaji ko....aur ise prasturt karne ke liye aapko bhi...ek nai duniya se avagat karaya aapne is ke jariye.....regards
मैं नहीं बदली, मेरी उल्फ़त न बदली
ReplyDeleteइससे भी लेकिन मेरी क़िस्मत न बदली।
Kya khub likha hai
इस बदलते दौर में सब कुछ तो बदला
ReplyDeleteएक बस इन्सान की वहशत न बदली।
भूख की चक्की में पिसता है युगों से
आज तक मज़दूर की हालत न बदली।
Bahut badiya.
ReplyDeleteडाक्टर साहेब के ब्लॉग पर इन्होने लीला वती जी की इतनी सुंदर रचना पेश की है जिसे वास्तव में रचना कहा जाना चाहिए /भूख की चक्की में पिसते मजदूर की हालत में युगों से आज तक कोई सुधार नहीं आया है /भूंखे मजदूर की हालत हर ....राज्य में ,हर स्वर्ण युग में यथावत रही /श्रम सदा से ही शोषित रहा है और रहेगा /बहुत बाद आए ,बहुत मत आए ,करोडो नीतिया लाखों वर्षों में बनी /लेकिन नीतिया बनाने वाले स्वं भी श्रम के सोषक रहे हैं /क्या हम स्वम ऐसा चाहते हैं की हमारे घर काम करने वाली बाई ज़्यादा पैसे मांगे और कम काम करे ?क्या दीवाली पर मजदूर लाते हैं भावः नहीं करते ज़्यादा काम नहीं कराते चाय भी इसीलिये पिलाते हैं की आधा घंटा और काम कर दे /कुछ दिन बाद देखना ये पौष का माह निकल ही गया है सर पर लाईट के गमले रखे ,बारात के साथ चलते बच्चे पूछना उससे आज तुझे कितनी मजदूरी मिलेगी ,आम बच्चों की एक टॉफी के बराबर उन की ६-७ घंटे की मजदूरी ,आपके प्राचीन काल में सतयुग में दास दासी दहेज़ में दिए जाते थे ,बंधुआ मजदूर थे /
ReplyDelete'इस बदलते दौर में सब कुछ तो बदला
ReplyDeleteएक बस इन्सान की वहशत न बदली।'
-लीलावातीजी की सुंदर कविता पढ़वाने के लिए साधुवाद.
सुंदर रचना, एक सफल प्रयास डॉक्टरजी . सुंदर ब्लॉग
ReplyDeleteधनयवाद
इस बदलते दौर में सब कुछ तो बदला
ReplyDeleteएक बस इन्सान की वहशत न बदली।
भूख की चक्की में पिसता है युगों से
आज तक मज़दूर की हालत न बदली।
अच्छी अभिव्यक्ति के लिए और इन दो बहुत ही सफल शेरों के लिए लीलावती बंसल जी को हार्दिक बधाई.
भावना जी का आभार इस प्रस्तुति के लिए.
द्विजेन्द्र द्विज
Bhookh kee chakkee men pisata hai yugon se
ReplyDeleteAj tak majdoor kee halat na badlee.
Bhavna jee,
vaise to pooree gazal hee prashansaneeya hai par ...in do linon ne mujhe jyada prabhavit kiya.Adarneeya mata ji ko meree tarf se bahut badhaiyan deejiyega.
Hemant Kumar
बहुत बढिया ग़ज़ल प्रस्तुत की
ReplyDelete"सब बदल डाला बदलते दौर ने, पर ,
ReplyDeleteहाँ, बुजुर्गों की मगर शफ़क़त न बदली"
वाह ! एक से एक म्यारी शे`र ...
और उस पर माँ जी का भरपूर आशीर्वाद ...!
मेरा नमन और मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.....!!
---मुफलिस---
वाह बहुत खूब. एक नया अनुभव. आपकी लेखनी यूँ ही जादू बिखेरती रहे.
ReplyDeleteachhee rachnaaon kee kamee see masoos kar rahaa thaa. par hal ke dinon men blog par kuch dil ko chhune walii rachaneyen mileen.
ReplyDeleteaapko is liye dhanyavaad ki aapane ek achhee rachana padhane ka maukaa diyaa.
achha laga --
is badalte daur men sab kuchh to badlaa
ek bas insaan kee vahashat na badlee...
आपकी रचना हृदय को द्रवित करने वाली है। बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं तो तभी कविता लिखता हूं जब बीमार पड़ता हूं। एक-एक कर उन कविताओं को अपने ब्लाग पर डाल रहा हूं। आशा है पढ़ेंगी और अपनी प्रतिक्रिया जरूर भेजेंगी।
ReplyDeleteजबकि हर इक शै बदलती है यहाँ पर
ReplyDeleteक्यूँ अभी तक हुस्न की आदत न बदली।
याद उसकी क्यूँ भला मुझको न आए
जबकि अब तक इश्क की फ़ितरत न बदली।
Waaah ...! kmal ka likhti rahin hain aapki mata ji...mera naman unhen...aap khusnaseeb hain aapne ek kaviyitri k ghr janam liya.....
भूख की चक्की में पिसता है युगों से
ReplyDeleteआज तक मज़दूर की हालत न बदली।
खूबसूरत अभिव्यक्ति बेहतरीन शायरी , नए अंदाज, नए शब्दों से बुनी ग़ज़ल
मैं नहीं बदली, मेरी उल्फ़त न बदली
ReplyDeleteइससे भी लेकिन मेरी क़िस्मत न बदली।
याद उसकी क्यूँ भला मुझको न आए
जबकि अब तक इश्क की फ़ितरत न बदली।
भूख की चक्की में पिसता है युगों से
आज तक मज़दूर की हालत न बदली
बहुत ही खूबसूरत शेर कहे हैं, इन्हें हम तक पहुंचाने का शुक्रिया।