अम्माजी की नई पुस्तक आई है -"बानवे बंसत'
उसी के कुछ अंश दे रही हूँ
उदासी से घिरी अम्माजी कहती हैं-
जी रही हूँ मैं भला, कौन-सी आशा लिए।
बेबसी मुझको मिली है बेबसी के नाम पर।
एकबार मौसी की मार भी खानी पड़ी खेलते २ देर जो हो गई थी, तब पंक्तियाँ कुछ मन से इस तरह निकली-
ज़िन्दगी मिलना तो कुछ मुश्किल नहीं है दोस्तों,
मुझको तो रोना पड़ा है, ज़िन्दगी के नाम पर।
भक्ति भाव से ओत-प्रोत अम्माजी की कलम कभी यूँ बोल उठती-
बख़्शी है क्या क्या नेमतें, इन्सान को प्रभु।
कुछ तो मुझको भी दिया है, आपने ईनाम में।
बाकी अगली पोस्ट में आशा है पंसद आए
Bhawna
Monday, April 12, 2010
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bahut khoob amma ji ke achche swasthya ki kaamna karta hun...wo hamesha yunhi apni kalam se hame ashish de...
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
सुन्दर प्रस्तुति। आभार।
ReplyDeleteज़िन्दगी मिलना तो कुछ मुश्किल नहीं है दोस्तों,
ReplyDeleteमुझको तो रोना पड़ा है, ज़िन्दगी के नाम पर।
शानदार शेर
अम्मा जी की पुस्तक की कुछ आैर रचनाआें से परिचित कराइए नां
अशोक मधुप
बानवे बंसत-पढ़ने की इच्छा जाग उठी. अगली पोस्ट का इन्तजार करते हैं.
ReplyDeletepasand hi nahi bahut pasand aayi. main kafi dino ke aapki post ka intzaar kar rahi thi
ReplyDelete_Shruti
ज़िन्दगी मिलना तो कुछ मुश्किल नहीं है दोस्तों,
ReplyDeleteमुझको तो रोना पड़ा है, ज़िन्दगी के नाम पर ...
हमारे आपने पुस्तक पढ़ने की इच्छा जगा दी है ... बहुत ही कमाल का शेर है ये ...
ज़िन्दगी मिलना तो कुछ मुश्किल नहीं है दोस्तों,
ReplyDeleteमुझको तो रोना पड़ा है, ज़िन्दगी के नाम पर।
वाह...अम्माजी को नमन...
ये पुस्तक कहाँ से मिल सकती है पढने को?
नीरज
ammajee khoob achcha likhin hain.bhawnajee aapko bhi badhayee.
ReplyDeleteapki kabita bahut acchhi hai.
ReplyDeletedhanyabad
अतिउत्तम । आगे प्रतीक्षा रहेगी ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletevery nice. i am glad to see your blog badhai
ReplyDeletebhawnaji bahut sundar rachna badhai
ReplyDeleteअम्मा जी को प्रणाम ।
ReplyDeleteनयी पोस्ट डालें ।
अम्मा जी को प्रणाम ।
ReplyDeleteनयी पोस्ट डालें ।
Amma ji ko mera bhi pranaam..Mujhe bhi agli post ka intjaar hai
ReplyDeletebeautiful creation !
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