Sunday, March 22, 2009

रहता है जो इस दिल में, उस यार के सदके हम...

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रहता है जो इस दिल में, उस यार के सदके हम
जो मिट के न मिट पाया, उस प्यार के सदके हम।

जां अपनी चली जाये, परवाह नहीं कुछ भी
इज़्ज़त के पुजारी हैं, दस्तार के सदक़े हम।

होली हो, दीवाली हो, या ईद की खुशियाँ हों
बिछड़ों को मिला दे-उस त्यौहार के सदक़े हम।

संगीत ही दुनिया है, संगीत ही जां अपनी
इस साज़े-मुहब्बत की झंकार के सदक़े हम।

जब हो ही गए रुस्वा, हम सब से मिलेंगे अब
इक़रारे-मुहब्बत में इक़रार के सदक़े हम।

सदक़े-न्यौछावर, दस्तार-पगड़ी
लेखिका- लीलावती बन्सल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर

12 comments:

  1. भावना जी, बहुत सुंदर है आपकी अम्‍मा की रचना। पढ़ना अच्‍छा लगा।

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  2. होली हो, दीवाली हो, या ईद की खुशियाँ हों
    बिछड़ों को मिला दे-उस त्यौहार के सदक़े हम।

    बहुत खूब ..बहुत अच्छा इसको पढ़वाने का शुक्रिया

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  3. बहुत ही खूबसूरत रचना.

    रामराम.

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  4. बहुत ही अलग और बहुत ही अच्छी सोच वाली रचना


    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  5. दिल को छूने वाले,शब्द हैं मन मत्ते,
    दिल खुश हुआ, देखकर शाख के पत्ते

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  6. "जब हो ही गए रुस्वा, हम सब से मिलेंगे अब
    इक़रारे-मुहब्बत में इक़रार के सदक़े हम।"

    अत्यन्त सुन्दर पंक्तियां । धन्यवाद ।

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  7. होली हो, दीवाली हो, या ईद की खुशियाँ हों
    बिछड़ों को मिला दे-उस त्यौहार के सदक़े हम।
    वाह वाह .....
    एक से बढ़ कर एक शेर ....
    हर शेर तराशा हुवा, इस शेर में जीवन का saar है
    Bichdon ko milaa de.......tabhi to tyohaar hai

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  8. 'होली हो, दीवाली हो, या ईद की खुशियाँ हों
    बिछड़ों को मिला दे-उस त्यौहार के सदक़े हम।'
    -सुंदर.साधुवाद.

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  9. जां अपनी चली जाये, परवाह नहीं कुछ भी
    इज़्ज़त के पुजारी हैं, दस्तार के सदक़े हम।

    भावना जी, क्या कहू.....?? बस नमन है आपकी माता जी को..!!

    होली हो, दीवाली हो, या ईद की खुशियाँ हों
    बिछड़ों को मिला दे-उस त्यौहार के सदक़े हम।...वाह...लाजवाब...!!

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  10. your poems is nice. Are you interested t published in magazine.
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  11. बहुत खुबसूरत रचना है!

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