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सामने उनके ज़ुबाँ ये, कुछ भी कह पाती नहीं
बात लेकिन दिल की किसके सामने आती नहीं।
नब्ज़ मेरी देख कर बतलाइए क्या है मुझे
जाम कितने पी चुका मैं, तिश्नगी जाती नहीं।
बारहा सोचा, समझ में आज तक आया नहीं
नींद क्यों आँखों में मेरी रात भर आती नहीं।
मुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
क्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।
हो गई जिसकी वजह से ज़िन्दगी आहों भरी
वो परीवश भी तो मुझको आके समझाती नहीं।
तिश्नगी-प्यास, परीवश- परियों जैसा, बारहा-बार-बार, मुब्तला-ग्रस्त, इबादत-पूजा
बात लेकिन दिल की किसके सामने आती नहीं।
नब्ज़ मेरी देख कर बतलाइए क्या है मुझे
जाम कितने पी चुका मैं, तिश्नगी जाती नहीं।
बारहा सोचा, समझ में आज तक आया नहीं
नींद क्यों आँखों में मेरी रात भर आती नहीं।
मुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
क्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।
हो गई जिसकी वजह से ज़िन्दगी आहों भरी
वो परीवश भी तो मुझको आके समझाती नहीं।
तिश्नगी-प्यास, परीवश- परियों जैसा, बारहा-बार-बार, मुब्तला-ग्रस्त, इबादत-पूजा
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर
बहुत खूबसूरत रचना. शुभका्मनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
मुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
ReplyDeleteक्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।
बेहतरीन...शब्दों में प्रशंशा नहीं की जा सकती...इसे सिर्फ महसूस करके वाह ही किया जा सकता है...नमन है ऐसी लेखनी को...
नीरज
उर्दू लफ्ज से सजी ये गजल बहुत पसंद आयी । आपने शब्दो के मायने न लिखे होते तो समझना मुश्किल होता ।
ReplyDeleteहो गई जिसकी वजह से ज़िन्दगी आहों भरी
ReplyDeleteवो परीवश भी तो मुझको आके समझाती नहीं।
बहुत सुन्दर बहुत बढ़िया ..शुक्रिया
BAHOT HI SHAANDAAR GAZAL PADHANE KO MILA BAHOT BAHOT BADHAAEE AAPKO...
ReplyDeleteARSH
बारहा सोचा, समझ में आज तक आया नहीं
ReplyDeleteनींद क्यों आँखों में मेरी रात भर आती नहीं।
मुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
क्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।
wah behtarin
नब्ज़ मेरी देख कर बतलाइए क्या है मुझे
ReplyDeleteजाम कितने पी चुका मैं, तिश्नगी जाती नहीं।
bahut badhiyaN
very nice lines ...
ReplyDeletevery nice lines ...
ReplyDeleteमुझे बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना
ReplyDeleteमुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
ReplyDeleteक्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।
बहुत सुंदर .
मुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
ReplyDeleteक्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।
Waah! Waah ! Waah ! Lajawaab.....aur kya kahun...
हो गई जिसकी वजह से ज़िन्दगी आहों भरी
ReplyDeleteवो परीवश भी तो मुझको आके समझाती नहीं।
खूबसूरत ग़ज़ल...............अद्भुद रचना, मज़ा आ गया हर शेर लाजवाब
किसी ख्यातनाम शायर की गजल सी लगती है. साधुवाद.
ReplyDeleteविश्वास नहीं होता .......!
ReplyDelete... खूबसूरत गजल।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल है।बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना!!
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