Monday, March 2, 2009

मर गई इन्सानियत इन्सान की इस दौर में...

7.
मर गई इन्सानियत इन्सान की इस दौर में
शान मिट्टी हो गई ईमान की इस दौर में।

अब किसी के खून में सुर्ख़ी नहीं, गर्मी नहीं
चर्ख़ तक गुड्डी चढ़ी शैतान की इस दौर में।

काम कुछ आती नहीं अब बुज़र्गों की दुआ
क्या ज़रूरत रह गई भगवान की इस दौर में।

जिस जगह भी देखिए हैवानियत का नाच है
हर कहीं सत्ता है बस हैवान की इस दौर में।

आज की दुनिया है बस चालाकियों पर है टिकी
ख़्वार है मिट्टी बहुत, नादान की इस दौर में।
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर

15 comments:

  1. बहुत उम्दा प्रस्तुति. आभार इसे यहाँ पेश करने का.

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  2. सशक्त अभिव्यक्ति।

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  3. सच बात लिखी है आपने । सुन्दर रचना । अच्छे भाव ।धन्यवाद

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  4. बेबाकी से सच लिखा है आपने

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  5. जिस जगह भी देखिए हैवानियत का नाच है
    हर कहीं सत्ता है बस हैवान की इस दौर में।
    waah bahut achhi lagi gazal

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  6. काम कुछ आती नहीं अब बुज़र्गों की दुआ
    क्या ज़रूरत रह गई भगवान की इस दौर में।
    नमन है इस लेखनी को...अद्भुत...
    नीरज

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  7. बहुत सुंदर !
    घुघूती बासूती

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  8. काम कुछ आती नहीं अब बुज़र्गों की दुआ
    क्या ज़रूरत रह गई भगवान की इस दौर में।
    aaj ke samaj ka yatharth chitran milta hai is gazal mein, dil se nikli huye baat lagti है

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  9. आज के दौर की सटीक तस्वीर।

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  10. बेहद उम्दा......पूर्णत: सच्चाई को दर्शाती रचना.....

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  11. जिस जगह भी देखिए हैवानियत का नाच है
    हर कहीं सत्ता है बस हैवान की इस दौर में।"

    बहुत प्रासंगिक और सच्ची पंक्तियां. धन्यवाद.

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  12. ख़्वार है मिट्टी बहुत, नादान की इस दौर में

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