Wednesday, March 25, 2009

सामने उनके ज़ुबाँ ये, कुछ भी कह पाती नहीं...

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सामने उनके ज़ुबाँ ये, कुछ भी कह पाती नहीं
बात लेकिन दिल की किसके सामने आती नहीं।

नब्ज़ मेरी देख कर बतलाइए क्या है मुझे
जाम कितने पी चुका मैं, तिश्नगी जाती नहीं।

बारहा सोचा, समझ में आज तक आया नहीं
नींद क्यों आँखों में मेरी रात भर आती नहीं।

मुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
क्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।

हो गई जिसकी वजह से ज़िन्दगी आहों भरी
वो परीवश भी तो मुझको आके समझाती नहीं।


तिश्नगी-प्यास, परीवश- परियों जैसा, बारहा-बार-बार, मुब्तला-ग्रस्त, इबादत-पूजा
लेखिका- लीलावती बंसल
प्रस्तुतकर्त्ता- भावना कुँअर

18 comments:

  1. बहुत खूबसूरत रचना. शुभका्मनाएं.

    रामराम.

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  2. मुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
    क्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।
    बेहतरीन...शब्दों में प्रशंशा नहीं की जा सकती...इसे सिर्फ महसूस करके वाह ही किया जा सकता है...नमन है ऐसी लेखनी को...

    नीरज

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  3. उर्दू लफ्ज से सजी ये गजल बहुत पसंद आयी । आपने शब्दो के मायने न लिखे होते तो समझना मुश्किल होता ।

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  4. हो गई जिसकी वजह से ज़िन्दगी आहों भरी
    वो परीवश भी तो मुझको आके समझाती नहीं।

    बहुत सुन्दर बहुत बढ़िया ..शुक्रिया

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  5. BAHOT HI SHAANDAAR GAZAL PADHANE KO MILA BAHOT BAHOT BADHAAEE AAPKO...


    ARSH

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  6. बारहा सोचा, समझ में आज तक आया नहीं
    नींद क्यों आँखों में मेरी रात भर आती नहीं।

    मुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
    क्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।
    wah behtarin

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  7. नब्ज़ मेरी देख कर बतलाइए क्या है मुझे
    जाम कितने पी चुका मैं, तिश्नगी जाती नहीं।

    bahut badhiyaN

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  8. मुझे बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना

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  9. मुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
    क्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।
    बहुत सुंदर .

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  10. मुब्तला मैं हो गया हूँ इश्क़ में अब क्या करूँ?
    क्यों इबादत अब खुदा की काम कुछ आती नहीं।

    Waah! Waah ! Waah ! Lajawaab.....aur kya kahun...

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  11. हो गई जिसकी वजह से ज़िन्दगी आहों भरी
    वो परीवश भी तो मुझको आके समझाती नहीं।

    खूबसूरत ग़ज़ल...............अद्भुद रचना, मज़ा आ गया हर शेर लाजवाब

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  12. किसी ख्यातनाम शायर की गजल सी लगती है. साधुवाद.

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  13. विश्वास नहीं होता .......!

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  14. बहुत सुन्दर गज़ल है।बधाई स्वीकारें।

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  15. बहुत सुन्दर रचना!!

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